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नागरिकता संशोधन विधेयक: क्या ये आइडिया ऑफ़ इंडिया के ख़िलाफ़ है-नज़रिया

भारत की जो मूलभूत परंपरा रही है वो ये है कि कोई भी शरणार्थी अगर हमारे द्वार पर आया है और वो अपने मुल्क में प्रताड़न का शिकार है, तो हमने उससे ये नहीं पूछा है कि उसकी जाति क्या है, उसका मज़हब क्या है, वो किस समुदाय का है, हमने उसको पनाह दी है. ये आज से नहीं बल्कि सदियों से भार त की मूलभूत अवधारणा का आधार रहा है. जब पारसी पांचवी और आठवीं सदी में परसिया से प्रताड़ित हो कर भागे थे (जो आजकल ईरान, इराक़ है), तो वो गुजरात प हुंचे थे. पढ़िए - बीजेपी के राष्ट्रीय परिषद के स दस्य शेषाद्रि चारी का लेख जो कहते हैं कि इससे बड़ा असत्य कुछ और नहीं हो सकता है कि नागरिकता संशोधन बिल भारत के उस मूल विचार (आइडिया ऑफ़ इंडिया) के ख़िलाफ़ है, जिसकी बुनियाद हमारे देश के स्वाधीन ता संग्राम सेनानियों ने रखी थी. वो लोग संजन में आकर उतरे थे और वहां के राजा राणा जाधव ने उनको पनाह दी थी. इसके बाद वो भारत की फिज़ां में घुलमिल गए. इस तरह के इतिहास में अनेकों उदाहरण हैं, जहां भारत ने अपना दिल और दिमाग़ संकीर्ण नहीं किया और एक व्यापकता और दरियादिली दिखाई. पढ़िए - नालसार लॉ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और क